बिहार में सूखे की आहट है और सूखे से लड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण घटक रसायनिक खाद पोटाश किसानों को मिल नहीं रहा है। क्योंकि राज्य को आवश्यकता का मात्र 33 प्रतिशत एमओपी यानी म्यूरेट ऑफ पोटाश मिल सका है। कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक राज्य में 95 हजार मीट्रिक टन पोटाश की जरूरत है। इसमें केन्द्र सरकार की ओर से 90 हजार 600 मीट्रिक टन पोटाश का आवंटन हो सका और इसमें मात्र 31 हजार 624 मीट्रिक टन ही पोटाश की आपूर्ति की गई है। इसके कारण किसान चाहकर भी पोटाश नहीं खरीद पा रहे हैं।
हालत यह है कि धूप और गर्मी से धान की फसल कुंभलाकर सूख रही है। थोड़े सी नमी का स्तर कम होने पर फसल तनाव से बच नहीं पा रहा है। मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार गुरुवार तक पूरे बिहार में आवश्यकता से 42 प्रतिशत कम बारिश हुई है। ऐसे में सूखे की चपेट में धान की खेती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण देश में नहीं आ रहा पोटाश : भारत में पोटाश का उत्पादन नहीं होता है। पोटाश का उत्पादन सूखे हुए समुद्र के पास होता है। देश में पोटाश का आयात यूक्रेन और उसके आस-पास के देशों से होता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पोटाश देश में नहीं आ पा रहा है। इसके कारण कई फर्टिलाइजर कंपनियों ने पोटाश बनाना बंद कर दिया है। इसके कारण देश में पोटाश संकट आ गया है। हालांकि अभी नार्वे, जॉडेन और इजराइल से पोटाश आयात किया जा रहा है। जिससे कुछ हद तक पोटाश की आपूर्ति की जा रही है।
पौधों में पानी को रोककर सूखने से बचाता है पोटाश
वरीय वैज्ञानिक डॉ. पीके द्विवेदी बताते हैं कि पोटाश पौधों में पानी को अधिक समय तक रोककर रखता है। पौधे को सूखने व गिरने से बचाता है। प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने में सहायक होता है और फसल की गुणवत्ता, चमक, रंग और वजन में बढ़ोतरी करता है।