बिहार के सिस्टम पर सवालः माता-पिता को कोविड ने छीना, अपने हक के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर काट रही बेटी
तमाम दस्तावेज उपलब्ध रहने और जिलास्तर पर स्वीकृति के बावजूद उनकी पुत्री शरबत अफरोज को अनुग्रह अनुदान का भुगतान नहीं हुआ है। शरबत अफरोज जब भी संपर्क करती हैं, कहा जाता है कि दोबारा राशि आने वाली है।
बिहार के मुजफ्फरपुर से सरकारी सिस्टम की संवेदनहीनता का बड़ा मामला सामने आया है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की बुलंद नारेबाजी के बीच एक बेटी अपने हक के लिए सरकारी दफ्तरों के खाक छान रही है। बड़ी बात यह कि उसके सर से माता-पिता का साया उठ चुका है। इसके बावजूद, सिर्फ आश्वासन देकर एक अनाथ लाचार बेटी को उसका वाजिव हक नहीं दिया जा रहा है।
आइए, जरा मामले को समझते हैं। साल 2021 के मई में शहर के चंदवारा की जमीरन गाछी निवासी शब्बीर अहमद की पत्नी आबेदा खातून 66 वर्ष की उम्र में कोविड पॉजिटिव हो गई थीं। 10 मई को आरटीपीसीआर रिपोर्ट आई। इसी बीच शब्बीर भी कोविड की चपेट में आ गए। 77 वर्ष की अवस्था में 11 मई को उनकी मौत हो गई। इसके बाद आबेदा खातून की स्थिति और बिगड़ गई। उन्हें पटना ले जाया गया, लेकिन 17 मई को पटना के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस घटना को करीब 19 माह बीते चुके हैं। तमाम दस्तावेज उपलब्ध रहने और जिलास्तर पर स्वीकृति के बावजूद उनकी पुत्री शरबत अफरोज को अनुग्रह अनुदान का भुगतान नहीं हुआ है।
कोविड का शिकार बने शब्बीर अहमद और आबेदा खातून की आरटीपीसीआर जांच हुई थी। उसकी रिपोर्ट स्वास्थ विभाग की वेबसाइट पर अपलोड भी है, लेकिन कोविड अनुदान का भुगतान इसलिए नहीं हो पाया है कि आयी हुई राशि लौट गई है। बिना भुगतान लौटने के बाद अब उस राशि का दोबारा इंतजार हो रहा है।