शराबबंदी वाले बिहार में नशा जान ले रही है। एक ही जिले में 15 दिनों के अंदर 12 लोगों की मौत हो गई है। शराब को लेकर अलर्ट के बाद भी राज्य में कच्ची शराब का कुटीर उद्योग चल रहा है। शराब से हो रही मौत को लेकर पड़ताल की तो केमिकल से मौत का कनेक्शन सामने आया। जानिए बिहार में क्यों जहरीली हो रही शराब और कैसे चली जा रही आंखों की रोशनी…
15 दिन में 12 मौत ने उड़ाई नींद
छपरा में महज 15 दिनों में 12 लोगों की जान चली गई है। दो अलग-अलग थाना क्षेत्र में हुई घटना में नकली शराब का खुलासा हुआ है। पुलिस राज्य में छापेमारी कर रही है और हर छापेमारी में शराब का केमिकल कनेक्शन सामने आ रहा है। छपरा पुलिस ने छापेमारी के दौरान मशरख के मुसहर टोली से बड़े पैमाने पर देशी शराब और केमिकल बरामद किया है।
पुलिस के हाथ ऐसे केमिकल भी लगे हैं, जिससे शराब बनाई जा रही थी। रविवार की सुबह हुई पुलिस की अवैध शराब का कुटीर उद्योग मिला है। यहां जगह जगह शराब बनाई जा रही थी। मशरक थाना क्षेत्र के महाराणा प्रताप चौक के पास शराब का खेल जानलेवा चल रहा था।
मौत के बाद भी चल रहा धंधा
छपरा के मकेर थाना क्षेत्र के भाथा नोनिया गांव में शराब बनाने का खेल काफी दिनों से चल रहा था। अगस्त के पहले सप्ताह में शराब कांड ने पुलिस की नींद उड़ा दी। इस घटना में एक दर्जन से अधिक लोगों के आंखों की रोशनी चली गई जबकि 13 लोगों की मौत हो गई। इस घटना में एक बड़े शराब तस्कर को भी पकड़ा गया जो काफी दिनों से शराब के कारोबार में लगा था।
छपरा के ही मढौरा थाना क्षेत्र के भुआलपुर में जहरीली शराब से 9 लोगों की मौत हो गई। एक ही जिले में 15 दिनों के अंदर हुई दो जहरीली शराब कांड ने सरकार की नींद उड़ा दी। थानेदारों पर कार्रवाई करते हुए छापेमारी अभियान चलाया गया तो एक ही दिन में छपरा के मशरक में दो हजार लीटर शराब बरामद की गई। मशरक के थानेदार रितेश कुमार मिश्रा ने बताया कि शराब के साथ शराब तैयार करने वाला सामान भी भारी मात्रा में बरामद किया गया है। इसमें भारी मात्रा में स्प्रीट भी शामिल है।
नौसादर और केमिकल से सड़ाते हैं शराब
पटना में कई बड़ी छापेमारी में शामिल रहने वाले उत्पाद विभाग के एक इंस्पेक्टर ने बताया कि शराब बनाने वालों ने भी ट्रेंड बदला है। अब वह जानवरों के दूध उतारने वाली इंजेक्शन ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल शराब में नशा को टाइट करने के लिए कर रहे हैं। उत्पाद विभाग की छापेमारी टीम से जुड़े कर्मियों का कहना है कि अमूमन देसी शराब के निर्माण के लिए महुआ के फूल का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ गन्ने का रस, शक्कर, शोडा, जौ, मकई, सड़े हुए अंगूर, आलू, चावल, खराब संतरे का भी इस्तेमाल किया जाता है।
हालांकि, मौजूदा समय में महुआ के पानी में केमिकल से नशा बढ़ाने का ट्रेंड बढ़ा है। इस कारण से शराब से होने वाली मौत का आंकड़ा भी बढ़ गया है। शराब बनाने में पहले कच्चा माल सड़ाने के लिए सोड़ा और नौसादर मिलाया जाता है। पूरी तरह से सड़ जाने के बाद इसमें स्प्रीट के साथ जानवरों का दूध उतारने वाली इंजेक्शन ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल किया जाता है। पानी के रंग को साफ करने के लिए कास्टिक सोडा या यूरिया मिलाया जाता है। एक साथ कई केमिकल मिलाने से इसके रिएक्शन की संभावना अधिक होती है।
जान नहीं गई तो भी सेहत को बड़ा खतरा
डॉक्टरों का कहना है कि जहरीली शराब से अगर जान नहीं भी जा रही है, तो भी इसका सेहत पर बड़ा असर है। डॉक्टर राणा एसपी सिंह का कहना है कि इससे नर्वस सिस्टम तो प्रभावित होता है, आंखों की रोशनी को भी खतरा होता है। केमिकल के प्रयोग के कारण लीवर और किडनी पर भी बड़ा असर पड़ रहा है। ऐसे में केमिकल वाली शराब का साइड इफेक्ट तत्काल तो मौत है, लेकिन बाद में यह स्वीट प्वाइजन की तरह काम करती है। इससे नपुंसकता व नर्वस सिस्टम के साथ आंख, किडनी और लीवर पर असर पड़ रहा है।
एक्सपर्ट बताते हैं कि मटेरियल को केमिकल डालकर सड़ाया जाता है जाे रिएक्शन से जहर बन जाती है। केमिकल और जानवरों का दूध उतारने वाली इंजेक्शन से खतरा तेजी से बढ़ा है। कभी-कभी शराब को ज्यादा नशीला बनाने के लिए मेथेनॉल भी मिलाया जाता है। रसायन विज्ञान के जानकार डॉ ए के एनजी बताते हैं कि मेथेनॉल या मेथिल अल्कोहल ग्रुप का सबसे सरल केमिकल है।
एंटीफ्रीजर में फ्रीजिंग लेवल कम करने के लिए इसे पानी में मिलाया जाता है। यह भी काफी खतरनाक है। मेथिल अल्कोहल शरीर में जाकर फार्मेल्डिहाइड या फार्मिक एसिड नामक जहर बन जाता है। यह शराब पीने वालों के दिमाग व शरीर के अन्य अंगों पर सीधा असर डालता है।