कोई भी भगवान ऊंची जिता का नहीं, अपने इस बयान पर उपजे विवाद के बाद जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी की वीसी शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने पल्ला छाड़ते कहा है कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है।
कोई भी भगवान ऊंची जिता का नहीं, अपने इस बयान पर उपजे विवाद के बाद जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी की वीसी शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने अब इससे पल्ला छाड़ते कहा है कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया। उन्होंने कहा कि वह बीआर आंबेडकर के बातों की व्याख्या कर रही थीं। शांतिश्री ने हाल ही में कहा था कि कोई भी भगवान ऊंची जाति के नहीं। उन्होंने यह भी कहा था कि भगवान शिव अनुसूचित जाति या अनुसूचित जानजाति के हैं।
जेएनयू की वीसी ने पीटीआई से कहा, ”मुझे लैंगिक न्याय पर बीआर आंबेडकर के विचारों पर बोलने के लिए कहा गया था। मैं बीआर आंबेडकर की व्याख्या कर रही थी। आप उनकी लेखनी देख सकते हैं। लोग मुझसे क्यों नाराज हो रहे हैं, उन्हें बीआर आंबेडकर से नाराज होना चाहिए। मुझे क्यों इसमें घसीटा जा रहा है।”
डॉ. बीआर आंबेडकर के जेंडर जस्टिस: डिकोडिंग द यूनिफॉर्म सिविल कोड नाम से लेक्चर सीरीज में पंडित ने कहा, ”मानवशास्त्र के हिसाब से भगवान ऊंची जाति से नहीं हैं और भगवान शिव भी अनुसूचित जाति से या आदिवासी हैं।” उन्होंने आगे कहा, ”पहले मैं अकादमिक, एक प्रोफेसर हूं। एक अकादमिक व्याख्यान का राजनीतिकरण क्यों किया जा रहा है? मैं वास्तव में दिल्ली में लेक्चर देने से डर रही हूं। हर चीज को गलत तरीके से पेश किया जाता है। मैं वास्तविक विचारक नहीं हूं, मैं एक प्रोफेसर हूं। मुझे बहुत दुख है, क्यों लोग इसका राजनीतिकरण कर रहे हैं।”
लेक्चर के दौरान वीसी ने यह भी कहा था मनुस्मृति में महिलाओं को शूद्र का दर्जा दिया गया है। उन्होंने कहा, ”मैं सभी महिलाओं को बता दूं कि मनुस्मृति के अनुसार सभी महिलाएं शूद्र हैं इसलिए कोई भी महिला यह दावा नहीं कर सकती कि वह ब्राह्मण है या कुछ और है। केवल शादी से ही आप पर पति या पिता की जाति मिलती है। मुझे लगता है कि यह बहुत प्रतिगामी है।”